काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अरविंद श्रीवास्तव

अरविंद श्रीवास्तव 

2-साहित्यिक उपनाम-अरविंद की असीम 

3-साहित्य सेवा-हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादन पुस्तकें, गाईड्स, सीरीज, ग्रामर बुक्स व प्रकाशन हिंदी पत्रिकाएँ 103 के पास, बच्चों के लिए विद्यालय के लिए कई नाटकों का लेखन। 

4-पत्रिकाओं का उद्धरण -5 मासिक, अर्धवार्षिक, वार्षिक पत्रिकाएँ 

5-प्रदर्शन-डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी' में महत्वपूर्ण भूमिका, कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर प्रदर्शन 

6-आकाशवाणी के तीन केंद्रों से o संबद्धता-कहानी वाचन, आलेख वाचन, काव्य पाठ 

7-वीडियो संस्करणों-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ) -इंदौर और मुंबई से निर्गत 

8- * सम्मान-विदेश में * (मास्को रूस, काठमांडू और म्यान्मार बर्मा में) 7 सम्मान 

 * देश में-लोकसभा अध्यक्ष श्री * * ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री' सम्मान सहित 100 से अधिक * सम्मान।

 * महत्वपूर्ण दायित्व- अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया, अभिभावक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगस द्रम जिला, * 

& लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार।

विशेष-जून 2018 में * मास्को में * 2 पुस्तकों का विमोचन, जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन * रंगून * (बर्मा) में सम्पन्न।

संपर्क -150 छोटे बाजार दतिया (म • प्र •) 475661

मोबा 94257 26907

क्रम 1

 (नवगीत- अज्ञानता)

भूख से पेट खाली होना

 कौन-किसकी मानता है

 फिर उसे उपदेश देते हैं 

यह मह अज्ञानता है।

                  झूठा को भरोसा था      

                   चैन की Hereat लेगी

                    बायडे थर्को मिले थे 

                   एक दुनिया भी रहती है 

                   । बंधी हुई साद ही मिली 

                संताप दिल से झांकता है।

                

तिकड़मी थे जो जहाँ में 

बहुत आगे बढ़ गया 

वैभव मिला, अधिकार मिला 

कई सीढ़ियां बे चढ गई 

 आजकल हर आदमी

 यह बात को भी जानता है।

                 जीवन कैसे कटे      

                  दुख- दर्द से दुखिया भरा 

                  न्याय- दौलत चंद के हाथ

                 आम इंसा है डरा

                 नीति क्या है, रीति क्या है       

                 कौन यह सब मानता है 

    डॉ। अरविंद श्रीवास्तवअसीम दतिया 

क्रमांक -2

 * -मेरा शहर - (* नवगीत)

 मेरा शहर रात-दिन जीता 

कल के बारे में - तनाव 

कहीं हो रहा है शोर-शराबा                                  

कुछ दिखा रहा है

             अलग-अलग कपड़ों में शोभित

             धर्मों के अनुयायी 

           शांति, दया, की भाषा जिनको 

             कभी भई नहीं    

             अंधकार के गुप्त समर्थक      

            जनता पर बड़ा प्रभाव है। 

राजनीति के धार -पेच

 हमने कभी समझ नहीं पाया 

 छत दीवालों पर बैठी 

पर मन ही मन इतराए

दरवाजे का घर आंगन से 

   क्यों बदल गया।

           भीड़ कहर बन कर टूटी

            हिंसा का तांडव है 

           निरस्त कर दिया गया है                         

          यह 'असीम' अनुभव है

         बंद पुलिस वालों ने आकर        

         वहाँ पड़ना।

         मेरा शहर •••••••


 * डॉ। अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' * 

दतिया (मध्य प्रदेश) 

मोबाईल 94 257 26 907

क्रम ३

* जाने कितना अच्छा लगेगा * 

जा रहा है कितनी देर लगेगा 

उत्तर पाने में 

मुझको अपना भला लगा दिया

 गूंगा बन जाना।

             उगते सूरज के स्वागत में        

              हाथ जोड़ सब खड़े हो गए      

              अंधकार से लड़ने वाला     

               जुगनू दिखते डेरे हुए     

              चाटुकारिता भरी हुई क्यों      

              कोयल के हर गाने में।

 खुद जिंको समझा जग में 

वे स्वारथ के मित्र से मिले 

जिनको अपने लहू से सींचा 

उनकी हाल ही में विडियोग्रफी हुई 

दर्द सदा सह गया 

संबंध मानते हैं।

             न्यायिक कमजोर हुआ है     

             हर मजलूम सिसकता है          

            लूट -मार का दौर चल रहा     

           न्याय की दिखी विवशता है 

            निरपराध को बंद किया क्यों

            रात- रात भर थाने में।

 कुर्सी उनको मिली 

रखा ना जनता से नाता

 सेवा का दायित्व निभाना 

नहीं उन्हें आता 

कुचल दिया अरमानों को क्यों 

इस बेजार जमाने में।

 डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '

150 छोटा बाजार दतिया

 मोबाइल 9425726907

क्रमांक 4

 *कविता (खुशी)* 

मैंने अनवरत श्रम किया

 कठिन जीवन जिया।

  वांछित सफलता पाई 

पर वह नहीं मिल पाई ।

जीवन में नाम कमाया

 पर्याप्त सम्मान पाया ।

फिर भी जिसकी तलाश 

वह नहीं मिल पाई ।

यह बात समझ नहीं आई ।

पर एक दिन 

जब एक गिरते को उठाया 

बीमार को अस्पताल पहुंचाया ।

एक रोते हुए को हंसाया 

भूले -भटके को रास्ता दिखाया।

 एक भूखे को भोजन कराया

 प्यासे को पानी पिलाया ।

तो वह मुझे 

अनायास मिल गई

 मेरे सूने मन- आंगन

 में उतर गई। 

जिसकी मुझे तलाश थी

वह खुशी मांगने से नहीं  

बांटने से मिलती है 

वह पाने में नहीं, 

देने में ही मिलती है।

 डॉ। अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 

150 छोटे बाजार दतिया (मध्य प्रदेश) 475661 

मोबाइल 9425726907

क्रम 5

 * कविता --- देश प्रेम * 

 देश- प्रेम के प्रवल भाव से

 मन के सुंदर सुमन विहँसते।

 गंध गंध अनुपम होती है

 बलिदानों के पेज महकते।

            उग्रवाद, आतंक फैल गया है

            देश प्रेम ही इसका हल है।

           देशभक्ति से बढ़कर लुक

           दुनिया में ना कोई ताकत है।

 सीमाओं की रक्षा करना

 इसी भावना का नट है।

और वतन पर मरना-मिटना

  इसी भावना का द्योतक है।

            देश प्रेम की भावना नहीं 

            वह प्राणी केवल पत्थर है।

            कौन कहेगा थेरो मैन         

            वह तो पशु से भी बदतर है।

 देश प्रेम के सरस भाव को 

अब 'असीम' हम सब स्वीकार करते हैं। 

सत्य, धर्म के अनुशीलन 

देशभक्ति को और निखारें।

    * डॉ। अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' *       

         150 छोटे बाजार दतिया      

         (मध्यप्रदेश) 475661 

        मोबाइल 9425726907

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