आशुकवि नीरज अवस्थी

गंगा स्नान पर सामयिक मुक्तक


करोना के कहर से आज गंगा घाट सन्नाटा।

दिवस कितना हुआ मायूस कुछ मन को नही भाता।

पतित पावन सभी को मोक्ष देने वाली गंगा के,

किनारे कार्तिक पूनम को भी कोई नही जाता।


हुआ ऐलान अबकी बार ना होगा कोई मेला।

दुकान ओर सर्कस ना लगेगा चाट का ठेला।

नहाना है तो बस दस बीस दूरी अति जरूरी है,

नयन में नीर नीरज के न दिखता भीड़ का रेला।।

आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

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