"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ०रामबली मिश्र
*दरिद्र*
दरिद्रों को नित आती बातें बहुत हैं।
बिना अन्न मरते पर वादे बहुत हैं।।
नहीं जेब में एक रुपया दो रुपये।
शेखी बघारन को पैसे बहुत हैं।।
भोजन बिना बीतता सारा दिन है।
करते प्रदर्शन कि भोजन बहुत है।।
कपड़े पहनते उतारा हुआ वे।
कहते कि बैंकों में पूँजी बहुत है।।
रचते हैं ढोंग जैसे उद्योगपति हैं ।
घर में भरा माल उनके बहुत है।।
ऐसे दरिद्रों से ईश्वर बचायें।
माँगते हैं भीक्षा पर बनते बहुत हैं।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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