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डॉ०रामबली मिश्र
*दरिद्र*
दरिद्रों को नित आती बातें बहुत हैं।
बिना अन्न मरते पर वादे बहुत हैं।।
नहीं जेब में एक रुपया दो रुपये।
शेखी बघारन को पैसे बहुत हैं।।
भोजन बिना बीतता सारा दिन है।
करते प्रदर्शन कि भोजन बहुत है।।
कपड़े पहनते उतारा हुआ वे।
कहते कि बैंकों में पूँजी बहुत है।।
रचते हैं ढोंग जैसे उद्योगपति हैं ।
घर में भरा माल उनके बहुत है।।
ऐसे दरिद्रों से ईश्वर बचायें।
माँगते हैं भीक्षा पर बनते बहुत हैं।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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