*हाय मनमीत... (ग़जल)*
हाय मेरे मीत तुम बेजोड़ हो।
रच रहे संसार को दिलजोड़ हो।।
है बहुत रचना निराली तुम रचयिता।।
तुम स्वयं अनमोल प्रिय बेजोड़ हो।।
रच रहे हो सृष्टि को अपना समझ।
रात-दिन की तुम सहज गठजोड़ हो।।
पावनी अमृत हवा की चाल सी।
गंदगी को मात दे मुँहतोड़ हो।।
तुम हमारे प्यार की दीवार सी।
हर तरह की बात पर समकोण हो।।
प्यार तेरा पा हुआ पागल बहुत।
प्रेम में नित नाचती हमजोड़ हो।।
रागिनी बनकर चहकती हॄदय में।
प्रेम में राधा सरीखा जोड़ हो।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
*शुभनुमा (ग़ज़ल)*
बहुत सुंदर भावों की विद्योतमा हो।
मेरी रात रानी लुभानी नुमा हो।।
तेरे प्यार का मैं दीवाना बना अब।
वीरांगना रक्षिका मोहकमा हो।
तुझ में समा कर थिरकता मचलता।
दिन-रात तुम मेरी प्यारी गुमां हो।
मोहब्बत क्या होती बताऊँगा तुझ को।
चलो उड़ गगन में तुम्हीं नीलिमा हो।।
तोड़ूंगा जग से पुराने सब रिश्ते।
नवेली नयी नित्य तुम प्रीतिमा हो।।
बड़े नाज से तुझको पाला है मन में।
तुम्हीं मेरे दिल में शिव गंगानुमा हो।।
परम शांत हो कर वदन चूम लूँगा।
पंखुड़ियां चुसाती तुम्हीं आसमां हो।।
भले झाड़ियाँ हों या हो बीहड़ जंगल।
चुंबन ले गाती सदा गीतिमा हो।।
करती हो बातें सदा अंक में भर।
दिल को लुभाती तुम्हीं शुभगमा हो।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हृहरपुरी
9838453801
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