तप चुके हैं लौह में हम इसलिए फौलाद हैं।
जाँ हमारी है हथेली पर तभी आजाद हैं।
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दीन दुखियों की सुनी आवाज हमने आज तक।
बाद इसके भी अभी तक क्यूं हमीं नाशाद हैं।
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देशहित में काम करते ही रहे थे जो सदा।
उन सभी के हौंसलों से हम रहे आबाद हैं।
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धन रहे दौलत रहे सम्मान भी भरपूर हो।
पर निछावर देश पर होते नहीं अफ़राद हैं।
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रह रहे आराम से औ कामना है मौज की।
चाहती हैं सुख सदा कैसी हुईं औलाद हैं।
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रह रहे आराम से औ कामना है मौज की।
चाहती हैं सुख सदा कैसी हुईं औलाद हैं।
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सुनीता असीम
नाशाद=दुखी
अफ़राद=आदमी
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