*विनय चालीसा*
*दोहा:*
विनयावनत बने सहज, जो मानव बड़ भाग।
उसका हिय कोमल अमित, सबके प्रति अनुराग।।
*चौपाई:*
विनयशील मानव अति सुंदर।
सहज प्रेममय स्नेह समंदर।।
सबको अपना बंधु समझता।
सबको नित समान्नित करता।।
आता सबके काम निरन्तर।
करता सबकी मदद धुरंधर।।
सुंदर सोच-विचार युक्त है।
सर्व प्रयोजन में प्रयुक्त है।।
यहाँ वहाँ सर्वत्र जहाँ है।
विनय दिव्य बन सदा वहाँ है।।
अति हँसमुख प्रिय बोली-भाषा।
विनय सभ्यता की अभिलाषा।।
विनय चेतना का प्रतीक है।
राम सरीखा मधुर नीक है।।
विनयशील बनना अति दुष्कर।
पर बन जाये तो श्रेयष्कर।।
विनयी विजयी अति सम्मानित।
आकर्षक मोहक अपराजित ।।
कुण्ठारहित शांत अति शीतल ।
अति पावन स्वभाव प्रिय निर्मल।।
विनय जो मानत वह चेतन है।
जड़ के लिये सिर्फ तन-मन है।।
विनय जहाँ है राम वहीं हैं।
राम बिना निष्काम नहीं है। ।
विनय एक आदर्श मनुज है।
विनयहीन नर महज दनुज है।।
जहाँ विनय तहँ शुद्ध हृदय है।
विनयरहित प्राणी निर्दय है।।
विनय नित्य देही-आतम है।
सबसे ऊपर परमातम है।।
जहाँ विनय तहँ विद्यासागर।
बिन विनम्रता दुःख का नागर।।
विनयशीलता सकल संपदा।
विनयहीनता में दुःख-विपदा।।
विनय महा मानव का गेहा।
भरी हुई जिसमें है स्नेहा।।
सारे जग समक्ष जो नयता।
वह अति सुंदर मानव बनता।।
विनय भाव नमनीय दिव्य है।
लोकातीत मूल्य स्तुत्य है।।
जो सबको सम्मोहित करता।
विनयशील बन सब दुःख हरता।।
जो विनीत बन करत भलाई।
जग करता उसकी सेवकाई।।
विनयी मानव पाप मुक्त है।
करता कर्म धर्मयुक्त है।।
जिसमें विनय नीर बहता है।
सबकी वही पीर हरता है।।
मृदुल मनोहर विनयशील नर।
सौम्य दृश्यमान प्रिय सुंदर।।
कपटहीन अति साफ-स्वच्छ है।
निर्मल भाव विशाल वक्ष है।।
हृदयगामिनी गंगा बहतीं।
विनम्रता का जल बन दिखतीं।।
विनयशील सत्पात्र समाना।
जग को देता उत्तम ज्ञाना।।
विनयशील का मस्तक नत है।
नतमस्तक पर मस्त जगत है।।
मस्त जगत ही सदा ध्येय है।
छिपा ध्येय में पंथ श्रेय है।।
श्रेय राह में शुभ सन्देशा।
श्रम से अर्जन का उपदेशा ।।
नम्र निवेदन अति मार्मिक है।
हृदय चूमता मन धार्मिक है।।
जहाँ विनय तहँ नम्र भाव है।
अतिशय मीठा मधु स्वभाव है ।।
मधु भावों को बहने देना।
बदले में जन-दुःख हर लेना।।
संकटमोचन विनय भावना।
सबके प्रति अति शुभद कामना।।
जिसके मन में द्वेष नहीं है।
सभ्य विनय का वेश वही है।।
शिवाकार है सत्य विनय मन।
अति भावुक प्रशांत श्यामघन।।
जो होता सबका उपकारी।
वह विनम्रता का अधिकारी।।
हाथ जोड़ विनती कर चलता।
वही विनय प्रिय उत्तम बनता।।
जहाँ विनय तहँ सहज सुमति है।
विनय भावना में सद्गति है।।
*दोहा:*
विनय बना जो चल रहा, करता पावन कर्म।
मीठे मोहक शव्द दे,पालन करता धर्म।।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें