डॉ० रामबली मिश्र

 जाड़े की धूप    (दोहे)


सर्दी की मधुधूप का, लेते जा आनंद।

 पाता यह आनंद रस, अंधा य भी मतिमंद।।


जाड़े की इस धूप को, सुखदा औषधि जान।

कामदेव से भी बड़ा, यह अति ऊर्जावान।।


बंटती यह ऊर्जा सहज, नैसर्गिक निःशुल्क।

दे सकता कोई नहीं, इसका कथमपि शुल्क।।


धूप अगर मिलती नहीं, मर जाता इंसान।

कांप-कांप कर ठंड से, खो देता पहचान।।


जाड़े की यह धूप है, ईश्वर का वरदान।

मानव पाता मुफ्त में, ठंडक में यह दान।।


करे शुक्रिया ईश को, अदा सदा इंसान।

माने इस एहसान को, रखे ईश का मान।।


ईश्वर विरचित दिव्य है, सुंदर सुखद निसर्ग।

छटा निराली प्रकृति में, बसा हुआ है स्वर्ग।।


सकल प्राकृतिक संपदा, है ईश्वर की देन।

करना रक्षा प्रकृति की, यही देन अरु लेन।।


सीख प्रकृति से दान का, शिव पुरुषोत्तम मंत्र।

इस संस्कृति से खुद रचो, बनकर पावन तंत्र।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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