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दयानन्द त्रिपाठी दया
चाय पर दोहा
सर्दी की छायी घटा, उर से निकली हाय।
आनी-बानी ना पियो, चलो पिलायें चाय।।
अन-पानी आहार है, भूखा स्वाद संग नहीं जाय।
माधव का दीदार करो, घूंट-घूंट पियो चाय।।
जिह्वा कर्म दुराचरी, तीनों गृहस्थ में त्याग।
चाय पिलाओ खुद पियो, जब तक लगे न आग।।
मांस-मांस सब एक हैं, मुर्गी, हिरनी, गाय।
साधु संत फकिरीया, पीते गरम-गरम ही चाय।।
सर्दी चढ़ी है जोर से, गलत कहूं क्या राय।
मैडम तेरे हाथ की, मस्त बनी है चाय।।
अमली हो बहु पाप से, समुझत नहीं है भाय।
दुर्व्यसनों को त्याग के, सुबह - शाम लो चाय।।
सांच कहूं तो मारि हैं, झूठ कहूं तो विश्वास।
जो प्राणी ना चाय पिये, पछिताये संग बास।।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
चाय पियन को जुटत हैं, राजा रंक संग बाप।।
गरम पकौड़ी छान रही, भाग्यवान संग चाय।
सर्दी मौसम संग डार्लिंग, मन को बड़ी सुहाय।।
भई कोरोना बावरी, कहां फंसी मैं हाय।
अदरक तुलसी गिलोइया, डाल पिये सब चाय।।
सांस चैन की ले रहे, वैक्सीन मिले हैं भाय।
दया कहे पुरजोर से, अभी पियत रहो ही चाय।।
जो किस्मत के हैं धनी, जिनके घर में माय।
मां के हाथों से मिले, किस्मत वाली चाय।।
-दयानन्द_त्रिपाठी_दया
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