डॉ० रामबली मिश्र

 *आप अगर होते..*

   *(ग़ज़ल)*


आप अगर होते तो रमता।

रमण काल में सब कुछ कहता।


देर नहीं करता  मैं थोड़ी।

रहता सारा भेद उगलता।।


दिल में छिपे तथ्य सारे हैं।

सबको कह कर हल्का बनता।।


तुम अप्राप्य हो यह जग जाहिर।

 पर निकाल कर सब कुछ रखता।।


 भगवन से मिलना संभव है।

नहीं असंभव संभव बनता।।


पर कल्पन में तुम्हीं रमे है।

लिये कल्पना लोक विचरता।।


मत आओ पर बनो कल्पना।

लिये कल्पना सदा थिरकता।।


नहीं कल्पना से बाहर हो।

संग कल्पना नित्य विहरता।।


दृढ़ संकल्पित रहे कल्पना।

इच्छा पूरी करता रहता।।


मैं वनवासी इश्क धाम का।

जंगल जंगल घूमा करता।।


मन में रहो हृदय में उतरो।

इस प्रकल्प को स्थापित करता ।।


बहुत कल्पनालोक लुभावन।

प्राक्कल्पना पर चढ़ चलता।।


अनुमानों से हाथ मिलाकर।

सदा असंभव संभव करता।।


सकल सृष्टि को मुट्ठी में रख।

प्रेम-मेघ बन घुमड़ा करता।।


निश्चिन्तित हो शांत पथिक सा।

सबके उर में छाया रहता।।


आप कल्पना दृश्य मनोहर।

दृश्य देखता हर्षित रहता।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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