फूल पर भंवरे तो मंडराए बहुत।
कृष्ण का पर छेड़ना भाए बहुत।
******
मानते उनसे रहे थे दूर हम।
याद उनकी पर अभी आए बहुत।
******
जिन्दगी भर बेकली सी ही रही।
थे अकेले और घबराए बहुत।
******
जब चले जाने की बारी आ रही।
सोचकर ये आज पछताए बहुत।
******
इक किरण अब आस की है दीखती।
पास कोई उनके ले जाए बहुत।
******
फासले हों दरम्याँ पर बात हो।
हिज़्र तेरा कृष्ण दहकाए बहुत।
******
आसरा बाहों का अब तो दे जरा।
कष्ट के पानी तो भरवाए बहुत।
******
चांदनी सी रात में हम तुम रहें।
दिल मेरा ये सोच शरमाए बहुत।
******
मैं पुकारूं तुम चले आओगे क्या।
मूढ़ मति शंका ये करवाए बहुत।
******
कृष्ण तुमसे लो सुनीता मिल गई।
और उसमें तुम तो इतराए बहुत।
*****
सुनीता असीम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें