एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।* *।।स्वस्थ तन जीवन की सर्वोत्तम निधि* *है।।* थकी थकी सी जिन्दगी और ढीला ढीला सा तन। हारा हारा सा बदन और फीका फीका सा मन।। अजब सी अजाब बन गई रोज़ की कहानी। हर सांस लगती हारी हारी जीवन बना बेरंग सा बेदम।। जिन्दा रहने को बस जैसे दवा ले रहे हैं बार बार। लगता जैसे रोज़ कुछ साँसे माँग कर ले रहे हैं उधार।। बोझ सी बना ली है खुद अपनी ही जिन्दगी। जंक फूड खा रहे परंतु नहीं ले रहे हैं पौष्टिक आहार।। प्रकृति से नित प्रतिदिन बस दूर होते जा रहे हैं। खोकर रोगप्रतिरोधक शक्ति बस मजबूर होते जा रहे हैं।। दिखावे की जिंदगी और रोज़ ही अपौष्टिक आहार। अनियमित दिनचर्या से हम भरपूर होते जा रहे हैं।। जरूरत है आज बस स्वच्छ स्वस्थ तन और मन की। शुद्ध वायु पर्यावरण संरक्षण प्रकृति से निकट जन जन की।। उत्तम विचार और खान पान में शुद्धता है आवश्यक आज। स्वास्थ्य ही व्यक्ति की सर्वोच्च निधि बस इस एक प्रण की।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।।* मोब।।।। 9897071046 8218685464

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