"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डा. नीलम
*शीत दिवस*
भोर कोहरे से ढकी
शीत की लरजन लिए
दे रही संदेश जागो
ढल गई है रात प्रिय
क्या हुआ जो सूरज के
चूल्हे की आंच मद्धम रही
अंधेरी रात तो फिर भी
पटल से सरकती रही
रात भर ओस बरसात-सी
बरसती रही
ठिठुरते चमन में कलियां फिर भी महकती रहीं
बरफ के देश से बहकर
हवाएं आती रहीं
भेदकर दीवारें भित्तियों को
थर्राती रहीं
क्या हुआ गर मौसम में
आग नहीं
कर कसरत के जिस्म में तो आग रही
क्या हुआ जो.......
डा. नीलम
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