दयानन्द त्रिपाठी दया

 पंचायत_चुनाव 

बजा चुनावी बिगुल, लड़ने को तैयार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।

अपना होगा सुन्दर सपना, देख रहे सब अपना-अपना।

घुरहू औ कतवारू से देखो, हाल चाल दिन रात बना।।

अबकी बारी अपनी ही है, हैं सबसे सबल तैयार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।


जिनकी जमीं बनी हुई है, उनके भी हैं क्या कहने।

अबकी देखो कितने छुट भैईये, दौड़ रहे दिन-रात हैं सपने।।

यहां वहां सब फंसा रहे हैं, कितनों को ही लड़ा रहे हैं।

चलो ताव में हम देखेंगे, साहब संग फोटू दिखा रहे हैं।।

अपनी तो सरकारी लगी नहीं, देंगे सरकारी दे रहे विचार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी,लिए हाथ में हार खड़े।।


अपनी तो फांके मस्त हुए हैं, हर घर सपने दिखा रहे।

हाथ जोड़ चाय पिला, बातों में सबको उलझा रहे।।

हाथ जोड़कर लगा है पोस्टर, काम करायेंगे डटकर।

ऐसा वादा उनका है, बातें बना रहे हैं हटकर।।

रूपया  पैसा  खर्चेंगे, कई  नसेड़ी  द्वार  खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।


जयकारा झूठों का होगा, सच्चे कार्य दिखायेंगे।

मां - मां  की  कसमें  होंगीं, बातों का अम्बार लगायेंगे।।

हर पल हर क्षण अब देखो, जासूस गांव-गांव दौड़ायेंगे।

मूरख भी बातें ऐसे करते, खुद को चाणक्य बतायेंगे।।

जिनके भाव कभी ना मिलते, आंख झुकाये आयेंगे।

दया कहे, माता औ बहिनों के चरणों शीश में नवायेंगे।।

कई खड़े हैं अनुभव वाले, कितने तो पहली बार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।



       - दयानन्द_त्रिपाठी_दया

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