पेट न होता तो किसी से भेंट न होता - दयानन्द त्रिपाठी दया

 "पेट न होता तो किसी से भेंट न होता"


कैसी  तेरी  माया  प्रभु  है, 

तुने भी क्या  खेल  रचाई।

नहीं है भरता पेट दिया जो, 

लाख जतन करते हैं धाई।।


कैसी   तूंने    पेट    बनाई, 

हर दिन खाली हो जाता है।

लाख   करो   उपाय   मगर

अर्णव में सब समा जाता है।।


हर दिन पेट की ख़ातिर सब,

गलत  कार्य  भी   करते  हैं।

तेरी  पूजा  करने  के  हेतुक

तेरे घर को भी लूटा करते हैं।।


प्राणी ही प्राणी का दुश्मन,

पेट की ख़ातिर बन जाता है।

मंदिर मस्जिद का झगड़ा ले

आपस में ही लड़ जाता है।।


तेरी  बनाई   धरा   के  प्राणी

सबने  अपने  रूप  हैं  बदले।

तूं भी तो कुछ बदल दे माधव

नया स्वरूप दे पेट के बदले।।


जितना सत्य है नवजीवन का,

उतना सत्य है मृत्यु का आना।

पेट की ख़ातिर छल-प्रपंच कर

भूख पेट, उर का लगे मिटाना।।


तेरी बनाई धरा पर सब, 

होते हैं अपडेट यहां पर।

तूं भी कुछ अपग्रेड तो कर दे,

पेट हटा अब लेट न कर।।


बिकल   धरा   का   प्राणी   है   प्रभु,

पेट-सेट के चक्कर में ही है सब होता।

अब  तक  जो  मेरे   मगज़  में  आया,

पेट न होता तो किसी से भेंट न होता।।



                -दयानन्द त्रिपाठी दया

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