"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
विनय साग़र जासयवाल
दोहे -सर्दी और सूरज
1.
सर्दी के मारे बढ़ी , सूरज की औकात ।।
हर कोई ही कर रहा,बस उस से ही बात ।।
2.
सूरज सूरज कर रहा ,देखो सकल समाज ।
चंदा राजा जा रहे , सोंप उन्हें अब राज।।
3.
निकलो सूरज देवता , लेकर तेज अपार ।
दर्शन दे कर तुम करो ,सर्दी से उद्धार ।।
4.
जाड़े में मन जीतता ,सूरज का व्यवहार ।
नित्य सवेरे जाग कर ,बाँटे स्वर्णिम प्यार ।।
5.
इस सर्दी में है यही ,सबकी एक पुकार।
सूर्य देव आकर करो , हम सब पर उपकार ।।
6.
जाड़े में ऐसी पड़ी , इस मौसम की मार ।।
देख कुहासा हो गया ,सूरज भी बीमार ।।
7.
सुबह सवेरे आ गई ,बादल की बारात ।
सूरज की तब गिर गई , क्षण भर में औकात ।।
🖋️विनय साग़र जासयवाल
16/12/2020
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