"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
निशा अतुल्य
डॉक्टर
18.12.2020
नब्ज़ मेरी जरा देखो डॉक्टर
लगता मुझे बुखार चढ़ा
माथा मेरा ठंडा बहुत है
पर जाड़ा चढ़ता लगता ।
एक बुखार कोरोना का है
सांस सांस पर भारी है
घर से निकलते डर लगता है
कैसी ये बीमारी है ।
कुछ तुम को जो समझ में आया
तो हमको बतलाओ जरा
दुविधा में जीवन भारी है
सिर से पांव तक रहूँ ढँका ।
साँस न अब आती है मुझको
मुँह नाक कब तक रखूं ढका
कोरोना से मिलें कब छुट्टी
मन मेरा ये सोच रहा ।
कोरोना के चक्कर में ही
जीना मुश्किल हुआ मेरा ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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