निशा अतुल्य

 कविता 

तुम बिन जग सूना

2.12.2020


सुनो 

रुको कुछ मेरी बात सुनो

ये जो प्रेम निशानी है तुम्हारी 

हर पल इसको याद रखना साथी

जाओ कर्मपथ पर तुम 

पर लौट तुम्हें आना होगा ।


मैं जीवन संगनी हूँ तेरी 

इन राहों पर हूँ साथ सदा

ये जीवन पथ की पटरी है

जिस पर हमको है चलना ।


सुख दुख जीवन का मेला है 

जो हरदम साथ ही रहना 

मैं रहूँ इंतजार में तेरी 

तू आने की कोशिश करना ।


मैं रोक नही सकती तुमको 

ये कर्मपथ तुम्हारा है

देश सेवा का लिया जो व्रत

वही तुम्हें निभाना है 

तुम साँसों में बसे हो मेरे 

जीवन भर साथ हमारा है ।


मेरी धड़कन और दिल तेरा 

दिल मेरा धड़कन है तेरी 

मिल कर जुदा न होंगे कभी

ये दोनों को वादा करना ।


साजन तुम जीत कर आना 

मैं प्रतीक्षा रत रहूँगी सदा

तुम बिन जग सूना है मेरा

ये बात तुम्हें है बतलाना ।


तुम खुशियाँ मेरे दामन की

हर खुशी तुमने मुझ पर वारी 

एक खुशी मैं तुमको दूँगी 

अब देखो साजन मेरी बारी ।


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...