*मीत चाहिये (ग़ज़ल)*
इक सुंदर सा मीत चाहिये ।
मुझको मादक प्रीति चाहिये।।
मन करता संसार बसाना।
केवल तेरा प्यार चाहिये।।
मेरे पास सदा रहना है।
तुझ सा प्यारा यार चाहिये।।
मेरे सपनों की दुनिया में।
तेरा उर-रसधार चाहिये।।
अंकों की ही गणित चलेगी।
तीन मातृका प्यार चाहिये।।
तीन मातृका नयन सजाये।
नजरों पर एतबार चाहिये।।
दो मात्रा के मन का मिलना।
मन से मन का तार चाहिये।।
प्रेम अश्रु को अंजुलि में भर।
भावों का भण्डार चाहिये।।
अंतस्थल के तल पर लेटे।
दंभमुक्त सत्कार चाहिये।।
लगी प्यास को बुझ जाने दो।
प्रीति-नीर बौछार चाहिये।।
अधर चूमकर रस पीने का।
सुंदरतम आचार चाहिये।।
सभी तरह से एकीकृत हो।
मृदुल गुह्य मधु द्वार चाहिये।।
समरस मधुर प्रीति रस बरसे।
मोहक प्रेमोच्चार चाहिये।।
नहीं रहेंगे अंतेवासी।
सिद्ध प्रेम साकार चाहिये।।
गायेंगे नित प्रेम गीत मिल।
दिल का अविष्कार चाहिये।।
विछुड़ेंगे हम नहीं कभी भी।
प्रेमसूत्र का धार चाहिये।।
दीवाना बनकर जीना है।
प्रिय से आँखें चार चाहिये।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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