भर हुई अब चिड़िया चहकी
लालिमा चहुँ ओर भी फैली।
हुई धरा है देखो कुसमित
झूम झूम पवन रही बहकी ।।
मेघा घिर घिर आये ऐसे
प्यास बुझाए धरती जैसे ।
उठा पँख मयूरा है नाचे
कोयलिया कुहके है ऐसे ।।
हुई धरा है देखो कुसमित ।
झूम झूम पवन रही बहकी ।।
पीर पराई वो क्या जाने
जिसने कभी परहित न माने।
सूखी भू जब भी अकुलाई
सँग स्वयं के त्रासदी लाई ।।
भू होए कुसमित अब कैसे
झूम झूम पवन बहे कैसे ।।
चलो करें उपाय मिलकर हम
संरक्षण हो जल तलाब सब ।
वायु बहे प्रदूषण ना हो
स्वच्छ निर्मल पर्यावरण हो ।।
होगी फिर धरा भी कुसमित
झूम झूम बहेगी पवन फिर ।।
भोर हुई अब चिड़िया चहकी
लालिमा चहुँ ओर ही फैली ।
हुई धरा है देखो कुसमित
झूम झूम पवन रही बहकी ।।
स्वरचित
निशा अतुल्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें