*हकीकत (ग़ज़ल)*
जमीनी हकीकत बयां कर रहा हूँ।
समझो नहीं कुछ नया कह रहा हूँ।।
तुम्हारा चलन कितना सुंदर ग़ज़ल है।
सजन के लिये मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ।।
सुहाना ये मौसम प्रकृति मृदु लुभानी।
सहज भाव में मैं सजल लिख रहा हूँ।।
अच्छे दीवाने मधुर भाष निर्मल।
सजन के लिये इक भजन लिख रहा हूँ।।
सुंदर सलोने परम प्रीति ज्ञानी।
गोरे वदन पर नमन लिख रहा हूँ।।
आँखें हैं प्यासी तड़पता हृदय है।
मादक स्वरों में शरण लिख रहा हूँ।।
देखा है जब से पुकारा है मन से ।
भावों में बह कर वरण लिख रहा हूँ।।
प्रिय का मिलन कैसे होगा असंभव?
मस्ती में अंतःकरण लिख रहा हूँ।।
पढ़ता हूँ पोथी मैं लिखता हूँ गाथा।
बड़े प्रेम से छू चरण लिख रहा हूँ।।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें