*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-54
सीता बिकल बिरह-दुख भारी।
रजनी-रजनीसहिं धिक्कारी।।
सरै निसा नहिं बिरह-बियोगा।
अब कस होंहि मिलन-संजोगा??
पुनि-पुनि सोचहिं सीता माता।
बिरह-बिकल मन कंपित गाता।।
तब सिय बाम-भुजा अरु लोचन।
फरकन लगे करन दुख-मोचन।।
निसा अरध भे रावन जागा।
डाँटत सारथि रथ चढ़ि भागा।।
होत प्रात रन-भूइँ पधारा।
जाइ तहाँ कपिनहिं ललकारा।।
सुनि ललकार कपिन्ह सभ भट्टा।
बिटप-पहार उपारि लइ ठट्टा।।
धावत गए जहाँ रह रावन।
किए प्रहार पहार-तरु धावन।।
बिकल भयो निसिचर-दल भारी।
घेरे पुनि रावन ब्यभिचारी ।।
नखन्ह नोंचि बिकल तेहिं कीन्हा।
पुनि चपेटि बिदिर्न करि दीन्हा ।।
दोहा-होइ बिकल रावन तुरत,किय माया बिस्तार।
लगा करन कौतुक करम, हर बिधि सोचि-बिचार।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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