डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-32

हनुमत देखि तुरत प्रभु धाए।

भेंटि ताहि निज गरे लगाए।।

      तहँ तुरतै तब बैद सुसेना।

      औषधि उचित लखन कहँ दीना।।

उठा लखन प्रभु गरहिं लगावा।

सुखदायक प्रभु बहु सुख पावा।।

     भे बिषाद-मुक्त सभ बानर।

     अंगद-जामवंत गुन-आगर।।

तब हनुमान सुसेन उठावा।

लाइ रहे जहँ वहिं पहुँचावा।।

    सुनि रावन लछिमन-कुसलाई।

      भवा बिकल बहु-बहु पछिताई।।

कुंभकरन पहँ गवा दसानन।

अति लाघव अरु आनन-फानन।।

      ताहि जगा सभ कथा सुनावा।

       भयो समर कस सकल बतावा।।

बानर-भालू भारी-भारी।

सभ मिलि के मम निसिचर मारी।।

      देवान्तक अरु दुर्मुख बीरा।

      मारे कपिन्ह अकम्पन धीरा।

बचि नहिं सका नरन्तक भ्राता।

मारे सबहिं महोदर ताता।।

सोरठा-सुनु रावन मम भ्रात,होंहि न अब कल्यान तव।

            कुंभकरन कह तात, काहें कीन्हा सिय-हरन।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                             9919446372

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