डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-43

राम-कथन सुनि उठा बिभीषन।

कह कर छूइ मगन प्रभु-चरनन।।

     दीन्ह नाथ मोंहि आजु पियूषा।

     पियत जाहि मन मिटै कलूषा।।

अंगदादि सँग बानर-भालू।

रिपुनन्ह मारि बजावहिं गालू।।

       मारि-मारि तिनहीं भुइँ गाड़हिं।

       राम-कृपा हुलास बहु बाढहिं।।

निरखि गगन तें राम-कृपालू।

सिव सँग सुर सभ होंहि निहालू।।

      दातन्ह-लातन्ह-घूसन्ह बानर।

       मारि निसिचरिन्ह देहिं पछारन।।

कछुक त फारहिं उदर निसीचर।

कछुक काटि भुज पटकहिं महि पर।।

       काटि-काटि कपि निसिचर-मुंडा।

        तिनहिं लड़ा पुनि करहिं बिखण्डा।।

घन घमंड जिमि गरजन घोरा।

थूरहिं तिन्ह कपि गरजि कठोरा।।

       रुधिर-सनित कपि-भालु-सरीरा।

        कुपित काल बिकराल गँभीरा।।

लातन्ह रौंद-रौंद तिन्ह पीसहिं।

रपट-रपट निसिचरहिं घसीटहिं।।

       गाल फारि चीरहिं तिन्ह छाती।

       अँतड़ी पहिनहिं गरे सुहाती।।

काटउ-मारउ-पटकउ गूँजे।

इन्ह सब्दन्ह तें नभ-महि भीजे।।

      देखि बिकल बहु निसिचर रावन।

      रथ चढ़ि तुरत कीन्ह रन धावन।।

दस धनु धारि कहा दसकंधर।

भागहु नहिं लौटउ रन अंदर।।

      पाथर-तरु अरु लेइ पहारा।

      कपि-दल करई तेहि पे वारा।।

टूटि-फूटि सभ महि पे गिरहीं।

रावन बज्र देह जब परहीं।।

     अचलहि रहा ठाढ़ि रथ ऊपर।

     कुपित दसानन रहा बरोबर।।

मर्दन लगा कपिहिं जब धइ के।

त्राहि राम भागे सभ कहि के।।

दोहा-लखि के सभ भागत कपिन्ह,दसहु लेइ धनु-बान।

         रावन करि संधान झट,सायक उरग समान ।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                         9919446373

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