[24/01, 9:35 am] +91 99194 46372: *गीत*(16/14)
हम भारत के वासी हमको,
कण-कण इसका प्यारा है।
गर्व सदा है भारत पर ही-
भारतवर्ष हमारा है।।
सदियों पहले रहा विश्व-गुरु,
जीवन-सूत्र दिया जग को।
आज वही है गरिमा इसकी,
देता मूल मंत्र सबको।
पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण-
करता उर-उजियारा है।।
भारतवर्ष हमारा है।।
कहीं खेत फसलों से लहरें,
कृषक अन्न उपजाते हैं।
कहीं बाग में फल भी पकते,
मीठे फल सब खाते हैं।
बादल उमड़-घुमड़ नभ बरसें-
बहती सरिता-धारा है।।
भारतवर्ष हमारा है।।
ऋतुओं का यह देश निराला,
ऋतु वसंत-छवि न्यारी है।
विविध पुष्प उपवन में खिलते,
विलसित अनुपम क्यारी है।
हृदय-हरण कर प्रकृति मोहिनी-
देती शुचि सुख सारा है।।
भारतवर्ष हमारा है।।
कश्मीर-शीष है मुकुट सदृश,
शोभा लिए हिमालय की।
गिरि-गह्वर में बसे देव-घर,
पूजा रुचिर शिवालय की।
सिंधु उमड़ता दिशि दक्षिण का-
सब कुछ लगता न्यारा है।।
भारतवर्ष हमारा है।।
मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारे जो,
गिरजाघर भी यहाँ बने।
सबने अलख जगाई जग में,
भाव वही जो प्रेम सने।
बने विश्व परिवार एक जब-
रहता भाई-चारा है।।
भारतवर्ष हमारा है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
[24/01, 6:46 pm] +91 99194 46372: *मधुरालय*
*सुरभित आसव मधुरालय का*13
यह आसव मधुरालय वाला,
हृद अति हर्षाने वाला।
इसकी पद्धति ने ही जग को-
जीवन-कला सिखाई है।।
मधुर मधुरिमा आसव वाली,
सबको राह दिखाती है।
विश्व-पटल के इस कोने से-
उस कोने तक छाई है।।
जब भी औषधि काम न करती,
नहीं रोग को दूर करे।
देकर शरण इसी आसव ने-
मुरली मधुर बजाई है।।
यमुन-पुलिन यह कृष्ण-बाँसुरी,
राधा-रुक्मिणि-लाज-हया।
कौरव-कंस-दुशासन-घालक-
लंक में आग लगाई है।।
गीता-ज्ञान,वेद-मंत्र यह,
गुरु पुराण-श्रुति-चिंतन है।
अति प्राचीन-रुचिर रस-धारा-
जीवन-तत्त्व-पढ़ाई है।।
सर्व धर्म-सम्मान-भावना,
सब जन का हितकारी यह।
रखे नहीं यह 8बैर किसी से-
प्रेम-भाव-नरमाई है।।
सकल विश्व,यह धरती,अंबर,
सर-सरिता जो सिंधु महान।
सब में आसव,सब आसव में-
आसव जग गुरुताई है।।
उद्धारक यह और सुधारक,
यह तो कष्ट-निवारक है।
सकल ज्ञान की कुंजी आसव-
कुंजी गंग नहाई है।।
समिधा-हवन-कुंड यह आसव,
पावक पाप-जलावन यह।
वायु, व्योम में सतत प्रवाहित-
हवा शुद्ध पुरुवाई है।।
सकल मंत्र अभिमंत्रित आसव,
आसव मंत्र-कोष अक्षुण्ण।
अमिय-बूँद यह झर-झर झरती-
दुनिया पी हर्षाई है।।
शुद्ध हृदय जो पूण्य आत्मा,
उन्हीं को आसव सदा मिले।
पापी-कपटी-कलुषित हृदयी-
की भ्रम-जाल फँसाई है।।
मधुर वचन मन शीतल करती,
करता यह सिद्धांत अमल।
हृदय-कालिमा,दूषित वाचा-
इसको रास न आई है।।
भोगी कर स्नान अमल नित,
इस आसव की सरिता में।
भोग-वासना मय माया से-
करता ध्रुव विलगाई है।।
आसव अमृत धरा-धाम का,
जीवन को पावन करता।
भले न मानव रहे जगत में-
रहती तासु बड़ाई है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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