*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-51
कोटिक रावन रहे लखाई।
चहुँ-दिसि गरजहिं धाई-धाई।।
चले भाग कंपित सुर-देवा।
रावन एकहि सभ हरि लेवा।।
अब तो इहाँ भए बहु रावन।
जीत नहीं अब होय लखावन।।
अस कहि भाग गए सभ देवा।
सरन गुहा गिरि जाई लेवा।
कादर भालू-बानर भागे।
जुद्ध न अंगद-हनुमत त्यागे।।
नल अरु नील साथ हनुमाना।
अंगद मारहिं रावन नाना ।।
मीजि-मसलि जैसे भुइँ अंकुर।
कोटिक रावन पटकहिं थुर-थुर।।
लखि सुर-कपिन्ह हँसे रघुनाथा।
काटे एक बान बहु माथा ।।
तुरतै छटी सकल खल-माया।
उदित भानु भागहि तम-छाया।।
रावन इक लखि हरषित सबहीं।
सुमन-बृष्टि सुर प्रभु पे करहीं।।
प्रभु-प्रताप तें बानर-भालू।
रन महँ चले सभें श्रद्धालू।।
हरषित सुरन्ह देखि पुनि रावन।
होके कुपित चला नभ धावन।।
आवत देखि असुर सुर-देवा।
भागन लगे सभीत बनेवा ।।
सुरन्ह बिकल देखि तब अंगद।
उछरि तुरत खींचा गहि तिसु पद।।
पुनि सम्हारि निज बपु खल रावन।
करन लगा बरसा बहु बानन।।
काटे तुरत राम रिपु-सीसा।
फेंकन लगे भुजा जगदीसा।।
रावन-भुजा-सीस अस बाढ़े।
करत पाप जस तीरथ गाढ़े।।
दोहा-रावन-सिर-भुज बढ़त लखि,अंगद-द्विद-हनुमान।
लइ नल-निल-सुग्रीव सभ,किन्ह प्रहार बलवान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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