डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहा-लेखन*

दोहा अद्भुत छंद है,चौबिस मात्रा-भार।

तेरह-ग्यारह-मेल ये,देता हर्ष अपार ।।


गागर में सागर सदृश,रहे भाव मय गीत।

मधुर गीत-संगीत सुन,रिपु भी बनते मीत।।


रहें धरोहर ही सभी,संस्कृति के आधार।

इन्हें सुरक्षित रख करें,पुरखों का आभार।।


माता अपनी अवनि है,पिता रहे आकाश।

भ्रात सिंधु,भगिनी नदी,मत हो मनुज हताश।।


इस अनंत आकाश में,तारे रहें अनंत।

हैं अनंत प्रभु-नाम भी,कहते ऋषि-मुनि-संत।।


पूर्ण चंद्र को देख कर,बाँह पसारे सिंधु।

छू कर नभ को ही कहे,यही प्रीति है बंधु।।


बड़े-बुज़ुर्गों का सदा,करें सभी सम्मान।

बने  रहें  पत्ते  हरे, पा तरु - प्रेम  महान।।

             ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

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