*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-42
सुभ अरु असुभ न सोचै रावन।
काम-लोभ-मद बिबस तासु मन।।
महामत्त गज रावन-दल मा।
गरजहिं जिमि कारे घन नभ मा।।
बिबिध प्रकार बाहन-रथ चलहीं।
भटहिं बिबिध माया मग करहीं।।
लखि रावन-चतुरंगी सेना।
कंपित-महि-गिरि-सागर-फेना।।
मारू राग बजावत चलहीं।
भट निज पौरुष चलत बखनहीं।।
जब रावन बुलाइ अस कहहीं।
मारउ जाइ रिपुन्ह जहँ रहहीं।।
हम मारब तापस दुइ भाई।
कउनउ बिधि हम सोचि उपाई।।
मरकट-भालू काल समाना।
उड़त चलहिं सपंख गिरि नाना।।
अस्त्रइ-सस्त्र तिन्हन्ह तरु-पर्बत।
नख अरु दंत जाइ नहिं बरनत।।
निर्भय होंहिं चलहिं बलवंता।
सुमिरत राम-नाम भगवंता।।
उन्मत गज रावन के हेतू।
रहँ केहरि प्रभु कृपा-निकेतू।
दुइनिउ दल निज-निज अनुकूला।
लागे लरन होइ प्रतिकूला।।
दोहा-आवत देखि निसाचरहिं, जस पिसाच अरु भूत।
देत दुहाई राम कै, चले तुरत प्रभु-दूत ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें