डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *प्रकृति सुंदरी*(16/14)

खिले-खिले फूलों की घाटी,

चित्ताकर्षक-मोहक है।

हिमाच्छादित शैल-श्रृंखला-

देव-लोक की द्योतक है।।


जी कहता जा वहीं बसूँ अब,

तज कर यह माया-नगरी।

माया-नगरी घटक धूलि की,

फूटे कब जा यह गगरी।

चंचल मन को अमर ठौर दे-

नाद-लोक-शुचि ढोलक है।।

   चित्ताकर्षक-मोहक है।।


दे सुगंध वह सदा महँकती,

बिना दाम दे जग महँके।

हिम की शोभा परम अनूठी-

कभी न चंचल मन बहके।

देव-लोक की अनुपम शोभा-

सुंदरता की खोलक है।।

     चित्ताकर्षक-मोहक है।।


आसमान पर छाए बादल,

लगते प्यारे-प्यारे हैं।

करते हैं हिम-कण की वर्षा-

लगते शोभन-न्यारे हैं।

प्रकृति मनोरमा सजी हुई है-

लगे अमिय-रस-घोलक है।।

     चित्ताकर्षक-मोहक है।।


स्वर्ग-लोक आ बसा अवनि पर,

लोचन को सुख देता है।

रुग्ण हृदय का संकट-मोचन,

दाम नहीं कुछ लेता है।

दृश्य कुदरती लगे समूचा-

परम धाम-सुख गोलक है।।

    खिले-खिले फूलों की घाटी-

    चित्ताकर्षक-मोहक है।।

           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

               9919446372

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