डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

राष्ट्र-सुरक्षा परम धर्म है,

हर जन का यह श्रेष्ठ कर्म है।

जीवन का बस यही मर्म है।।

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अपनी माटी परम पुनीता,

जैसे जनक-नंदिनी सीता।

शत-शत नमन राम-परिणीता।।

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माटी के गौरव किसान हैं,

माटी के रक्षक जवान हैं।

भारत माँ के स्वाभिमान हैं।।

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दुनिया में बजता है डंका,

चाहे अमरीका या लंका।

भारत-जय की बिन कुछ शंका।।

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माता-मातृ-भूमि-सम्मान,

यदि हम करते,बढ़ेगी शान।

ऐसे भाव का रहता मान।।

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आओ माता-लाज बचाएँ,

हर दिन इसका पर्व मनाएँ।

मिल कर बिगड़े काम बनाएँ।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             *गीत*(16/16)

नहीं चैन से सोने देती,

याद पिया की मुझे सताए।

ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-

तन-मन मेरे आग लगाए।।


घर-आँगन-चौबारा सूना,

सूना लगता है जग सारा।

सुनो, याद में तेरी साजन,

बहती रहती अश्रु की धारा।

चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-

मुझको चंदा नहीं सुहाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,

बोलो,तुमको हुआ है क्या?

उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,

याद तुम्हारी सताए पिया?

पर माथे की रूठी बिंदिया-

सबको सारा राज बताए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


रात बिताऊँ जाग-जाग कर,

दिन में राह निहारूँ तेरी।

बाहों में आ भर लो बालम,

यह है अब तो चाहत मेरी।

सायक कुसुम धनुष अनंग ले-

सर-सर सायक प्रखर चलाए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


 कली चमन में खिली देख कर,

भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।

सरसों फूली पीली-पीली,

देख हृदय सबके ललचाएँ।

पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-

लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


आकर दर्शन दे दो साजन,

तकें नैन ये राहें तेरी।

रहा न जाए अब तो मुझसे,

फैली हैं ये बाहें मेरी।

जीवन का है नहीं भरोसा-

जलता दीपक कब बुझ जाए??

      तन-मन मेरे आग लगाए।

      याद पिया की मुझे सताए।।

               "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

*भारत माता*

          *वीरों की धरती भारत*

वीरों की धरती भारत को,

शत-शत नमन हमारा है।

अपनी धरती,अपना अंबर-

जग में और न प्यारा है।।


प्यारी-प्यारी इसी भूमि ने,

जन्म दिया सुत वीरों को।

इनका करके सदा स्मरण,

नमन करें तस्वीरों को।

सदा ऋणी हम रहते इनके-

तन-मन-धन सब वारा है।।


राणा-गाँधी-बोस-शिवा जी,

शेखर-सुख,अशफ़ाक़-तिलक।

भगत पुत्र सब भारत माँ के,

हैं स्वतंत्रता के ये जनक।

कर बुलंद आवाज़ स्वतंत्रता-

की अरि को ललकारा है।।


कितने तो शूली पर चढ़ के,

माता की आशीष लिए।

इस माटी की तिलक लगाकर,

वीर मुदित निज शीष दिए।

पुत्रों के ही बलिदानों से-

सदा शत्रु भी हारा है।।


आज पुनः संकट है आया,

माँ की लाज बचानी है।

आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा,

अरि को धूल चटानी है।

अपना तो इतिहास यही है-

हर दुश्मन को मारा है।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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