त्रिपदियाँ
राष्ट्र-सुरक्षा परम धर्म है,
हर जन का यह श्रेष्ठ कर्म है।
जीवन का बस यही मर्म है।।
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अपनी माटी परम पुनीता,
जैसे जनक-नंदिनी सीता।
शत-शत नमन राम-परिणीता।।
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माटी के गौरव किसान हैं,
माटी के रक्षक जवान हैं।
भारत माँ के स्वाभिमान हैं।।
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दुनिया में बजता है डंका,
चाहे अमरीका या लंका।
भारत-जय की बिन कुछ शंका।।
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माता-मातृ-भूमि-सम्मान,
यदि हम करते,बढ़ेगी शान।
ऐसे भाव का रहता मान।।
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आओ माता-लाज बचाएँ,
हर दिन इसका पर्व मनाएँ।
मिल कर बिगड़े काम बनाएँ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
*गीत*(16/16)
नहीं चैन से सोने देती,
याद पिया की मुझे सताए।
ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-
तन-मन मेरे आग लगाए।।
घर-आँगन-चौबारा सूना,
सूना लगता है जग सारा।
सुनो, याद में तेरी साजन,
बहती रहती अश्रु की धारा।
चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-
मुझको चंदा नहीं सुहाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,
बोलो,तुमको हुआ है क्या?
उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,
याद तुम्हारी सताए पिया?
पर माथे की रूठी बिंदिया-
सबको सारा राज बताए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
रात बिताऊँ जाग-जाग कर,
दिन में राह निहारूँ तेरी।
बाहों में आ भर लो बालम,
यह है अब तो चाहत मेरी।
सायक कुसुम धनुष अनंग ले-
सर-सर सायक प्रखर चलाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
कली चमन में खिली देख कर,
भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।
सरसों फूली पीली-पीली,
देख हृदय सबके ललचाएँ।
पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-
लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
आकर दर्शन दे दो साजन,
तकें नैन ये राहें तेरी।
रहा न जाए अब तो मुझसे,
फैली हैं ये बाहें मेरी।
जीवन का है नहीं भरोसा-
जलता दीपक कब बुझ जाए??
तन-मन मेरे आग लगाए।
याद पिया की मुझे सताए।।
"©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
*भारत माता*
*वीरों की धरती भारत*
वीरों की धरती भारत को,
शत-शत नमन हमारा है।
अपनी धरती,अपना अंबर-
जग में और न प्यारा है।।
प्यारी-प्यारी इसी भूमि ने,
जन्म दिया सुत वीरों को।
इनका करके सदा स्मरण,
नमन करें तस्वीरों को।
सदा ऋणी हम रहते इनके-
तन-मन-धन सब वारा है।।
राणा-गाँधी-बोस-शिवा जी,
शेखर-सुख,अशफ़ाक़-तिलक।
भगत पुत्र सब भारत माँ के,
हैं स्वतंत्रता के ये जनक।
कर बुलंद आवाज़ स्वतंत्रता-
की अरि को ललकारा है।।
कितने तो शूली पर चढ़ के,
माता की आशीष लिए।
इस माटी की तिलक लगाकर,
वीर मुदित निज शीष दिए।
पुत्रों के ही बलिदानों से-
सदा शत्रु भी हारा है।।
आज पुनः संकट है आया,
माँ की लाज बचानी है।
आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा,
अरि को धूल चटानी है।
अपना तो इतिहास यही है-
हर दुश्मन को मारा है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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