डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

सौंधी गंध लिए आ जाओ,

घर-आँगन सुरभित हो जाएँ।

संग बहारों को ले आओ-

तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


छीन बादलों से बरसातें,

आ धरती की प्यास बुझाओ।। 

सूखी पड़ी सभी सिवान हैं,

दे हरियाली उन्हें जिलाओ।

सभी प्रतीक्षारत लगते हैं-

तुमको पा हर्षित हो जाएँ।।

   तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


छीन पवन से पुरुवाई भी,

ले बहो मस्त वन-बागों में।

दिनकर की भी ले कर किरणें,

आ खिल जा कमल-तड़ागों में।

तुमको पाकर लतिकाएँ सब-

विह्वल हो पुष्पित हो जाएँ।।

    तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


 सुर सातों ले तुम झरनों से,

 आओ चले बजाते सरगम।

बस्ती-कुनबे,नगर-डगर सब,

सुनना चाहें गीत सुधा सम।

सुनकर तेरे गीत सुरीले-

 वृक्ष पत्र से पूरित हो जाएँ।।

      तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।


पुनि आ जा ऐ मीत हमारे,

खुला हुआ घर-आँगन मेरा।

आकर करो सुगंधित फिर से,

मेरे साजन,घर जो तेरा।

तेरा साथ सुगंधित पा कर-

हृदय-कुसुम कुसुमित हो जाएँ।।

     संग बहारों को ले आओ,

     तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।

 

कब से लिए आस मैं जोहूँ,

आकर प्यास बुझा तो जाओ।

प्यार भरा आलिंगन देकर,

सोया प्रेम जगा तो जाओ।

पाकर स्नेहिल आलिंगन सब-

प्रेम-भाव द्विगुणित हो जाएँ।।

      संग बहारों को ले आओ,

      तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।

                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...