*गीत*(16/16)
सौंधी गंध लिए आ जाओ,
घर-आँगन सुरभित हो जाएँ।
संग बहारों को ले आओ-
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
छीन बादलों से बरसातें,
आ धरती की प्यास बुझाओ।।
सूखी पड़ी सभी सिवान हैं,
दे हरियाली उन्हें जिलाओ।
सभी प्रतीक्षारत लगते हैं-
तुमको पा हर्षित हो जाएँ।।
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
छीन पवन से पुरुवाई भी,
ले बहो मस्त वन-बागों में।
दिनकर की भी ले कर किरणें,
आ खिल जा कमल-तड़ागों में।
तुमको पाकर लतिकाएँ सब-
विह्वल हो पुष्पित हो जाएँ।।
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
सुर सातों ले तुम झरनों से,
आओ चले बजाते सरगम।
बस्ती-कुनबे,नगर-डगर सब,
सुनना चाहें गीत सुधा सम।
सुनकर तेरे गीत सुरीले-
वृक्ष पत्र से पूरित हो जाएँ।।
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
पुनि आ जा ऐ मीत हमारे,
खुला हुआ घर-आँगन मेरा।
आकर करो सुगंधित फिर से,
मेरे साजन,घर जो तेरा।
तेरा साथ सुगंधित पा कर-
हृदय-कुसुम कुसुमित हो जाएँ।।
संग बहारों को ले आओ,
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
कब से लिए आस मैं जोहूँ,
आकर प्यास बुझा तो जाओ।
प्यार भरा आलिंगन देकर,
सोया प्रेम जगा तो जाओ।
पाकर स्नेहिल आलिंगन सब-
प्रेम-भाव द्विगुणित हो जाएँ।।
संग बहारों को ले आओ,
तन-मन सब पुलकित हो जाएँ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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