डॉ0हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-47

रावन अब तहँ भवा अकेला।

चहै करन बहु माया-खेला।।

     बिरथ देखि रन महँ रघुबीरा।

     बिकल भए सभ देव गँभीरा।।

धाइ इंद्र-रथ आवा मातुल।

भए मुदित देव जे ब्याकुल।।

    इंद्र काम ई उत्तम कीन्हा।

     जे प्रभु रामहिं निज रथ दीन्हा।

चंचल चारि नधे रथ घोरे।

अजर-अमर गति बायु-झकोरे।।

      हरषि चढ़े तेहि पे रघुबीरा।

       देखि कपिन्ह बाढ़ा बल-धीरा।।

कपिन्ह उछाह बिलोकि दसानन।

माया कइलस आनन-फानन ।।

     ब्यापै नहिं माया प्रभु रामहिं।

      लछिमन,कपि सभ सच ई मानहिं।।

राम-लखन बहु लखि रन माहीं।

कपि भे भ्रमित-अचंभित ताहीं।।

       हँसि प्रभु कीन्ह बान संधाना।

        भए मुक्त कपि-भालू नाना

बैठउ अब तुम्ह सभ कपि-भालू।

थकित भए तुम्ह कहे कृपालू।।

      द्वंद्व जुद्ध अब देखउ तुम्ह सब।

      बिबिध कला जुधि निरखहु तुम्ह अब।।

तुरत सुरहिं नवाइ निज माथा।

रथ चढ़ि तहँ आयउ रघुनाथा।।

      कुपित होइ तब रावन आवा।

      करत गर्जना धावा-धावा।।

दोहा-कह रावन क्रोधित-बिकल,सुनहु तपस्वी राम।

         जे जीतेउ अबहीं तलक,मैं नहिं रावन-नाम।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

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