*दोहे*
समय-समय का फेर है,राजा बनते रंक।
कभी पिलाए अमिय-रस,मारे यह फिर डंक।।
सीमा-रेखा पार जा,अपने सैनिक वीर।
धूल चटा कर शत्रु को,सदा विजय दें धीर।।
केवल जन-जागृति सदा,रचे नवल इतिहास।
राष्ट्र-सुरक्षा के लिए,जगे आत्म-विश्वास।।
जब आती है शीत-ऋतु,घर-घर जले अलाव।
इसे ताप कर सब करें,अपना ठंड बचाव।।
पड़ती है जब बर्फ़ तो,जा पहाड़ पर लोग।
हर्षित हो क्रीड़ा करें,बर्फ़ हरे सब रोग ।।
धरती का जो देव है,कहते उसे किसान।
अन्न उगा कर दे वही, करके कर्म महान।।
राजनीति की सोच शुचि,रहे देश का प्राण।
जन-जन का उत्थान हो,यही करे कल्याण।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919 44 63 72
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