*पिता-माहात्म्य*
*पितृ भाव*
जीवन-दाता जनक है,जैसे ब्रह्मा सृष्टि।
करे पिता-सम्मान जो,उसकी अनुपम दृष्टि।।
पिता देव के तुल्य है,इसका हो सम्मान।
इसका ही अपमान तो,कुल का है अपमान।।
चाल-चलन,शिक्षा-हुनर,सब सुख जो संसार।
चाहे देना हर पिता,सह कर कष्ट अपार ।।
पिता रहे चाहे जहाँ, रखे बराबर ध्यान।
सुख-सुविधा परिवार का,होता स्रोत महान।।
पिता-पुत्र,पुत्री-पिता,जग संबंध अनूप।
राजा दशरथ राम का,जनक-जानकी भूप।।
कभी तिरस्कृत मत करें,वृद्ध पिता को लोग।
बड़े भाग्य जग पितु मिले,बने सुखद संयोग।।
यही सनातन रीति है,पितु है देव समान।
पिता के कंधे पर रहे,कुल-उन्नति-उत्थान।।
पितृ-दिवस का है यही,बस उद्देश्य महान।
हर जन के हिय में बसे,पिता-भाव-सम्मान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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