डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *मधुरालय*

                *सुरभित आसव मधुरालय का*5

प्रकृति सुंदरी बन-ठन थिरके,

जब प्याले की  हाला  में।

मतवाला हो  पीने वाला-

लगती मधु पगलाई  है।।

         लगे चेतना विगत पिये जो,

         भूले  सारे  दुक्खों  को।

          सुख-सागर में डूबे उसको-

            प्यारी ही तनहाई  है।।

भूला-खोया-सोया-सोया,

पुनि जब हो  चैतन्य वही।

करता यादें सुखद  पलों की-

जिनसे सब बन  आई है।।

        नहीं सरल-साधारण आसव,

         मधुर प्रेम-रस-घोल यही।

         है त्रिदेव का वास ये मिश्रण-

         इसमें मंत्र समाई  है ।।

एक बार यदि लग जा चस्का,

बार-बार मन उधर  खिंचे।

मिले स्वाद वा मिले न फिर भी-

सुरभि सभी को भाई  है।।

        शीतल-मंद-सुगंध पवन सम,

         ही जैसे  हैं  गुण  इसमें।

          गुण से गुण का गुणा करें यदि-

          सुरभि अमल वह  पाई है।।

जंक लगे कल-पुर्जे तन के,

जब भी ढीले पड़ते  हैं।

राही ने तब जा मधुरालय-

बिगड़ी बात  बनाई  है।।

         विकल-खिन्न-बेचैन मना जब,

         करता संगति साक़ी  की।

         एक घूँट तब साक़ी  देकर-

         करता दुक्ख विदाई  है।।

मन-रुग्णालय,तन-रुग्णालय,

मधुरालय है रुचिर  निलय।

तुष्टि-दायिनी औषधि इसकी-

ही भव-ताप-मिटाई  है।।

         देवों ने भी आसव पी कर,

        पा ली यहाँ अमरता  को।

         जरा-मृत्यु से नहीं भयातुर-

         जीवन-अवधि बढ़ाई  है।।

अमित-कलश सुर-जग का अद्भुत,

मधुरालय सुखदाई है।

जीवन में माधुर्य भरा  है-

कभी न आई-जाई  है।।

       परम दिव्य,स्वादिष्ट,मधुर यह,

       मधुरालय का आसव  है।

       इसी हेतु तो सुर-असुरों  की-

       हुई प्रसिद्ध  लड़ाई  है।।

विष को गले लगा शिव शंकर,

अमृत-कलश बचाया है।

ऐसा कर के महादेव ने-

अद्भुत रीति निभाई है।।

       मधुरालय का साक़ी आला,

       प्रेम-पाग-रस  देता है।

      वह त्रिताप से पीड़ित मन सँग-

       करता  सदा  मिताई  है।।

                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...