*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-57
रोवत-बिलखत-पीटत छाती।
गई मँदोदरि रावन धाती ।।
सहि नहिं सकी भार तव धरनी।
तन तव नाथ आजु भुइँ परनी।।
कच्छप-सेष बिकल हो जाएँ।
परत भार तव बहु अकुलाएँ।।
नाथ तुम्हार तेज बड़ चमकै।
चंदन-अग्नि-तेज लखि लरकै।।
काल जितेउ तुम्ह भुज-बल नाथा।
आजु परेउ भुइँ असुध-अनाथा।।
बायु-बरुन-कुबेरहिं जीतेउ।
निज भुज-बल तुम्ह इंद्र घसीटेउ।।
नाथ-तेज जानहिं तिहुँ लोका।
पर तुम्ह दियो राम प्रभु सोका।।
तव गति भई एही तें अइसन।
जइसन करम मिलै फल तइसन।।
भयो बिनष्ट तोर कुल सारा।
बचा नहीं अब रोवनहारा।।
सुनि बिलाप मंदोदरि बेवा।
ब्रह्मा-सिव-सनकादिक देवा।।
नारद सहित सिद्ध मुनि-जोगी।
भए प्रसन्न मुदित सुख-भोगी ।।
लगे निहारन संकट-मोचन।
भरे नीर तें निज-निज लोचन।।
नारिन्ह बिलखत देखि बिभीषन।
पहुँचे तहाँ तुरत भारी मन ।।
रावन-दसा देखि भे सोका।
कीन्ह लखन समुझाइ असोका।।
किरिया-करम तुरत तब करई।
प्रभु कै कृपा-दृष्टि जब भवई।।
तब मंदोदरि देइ तिलांजलि।
की अरपित सभाव श्रद्धांजलि।।
दोहा-तब प्रभु राम बुला लखन,अंगद-निल-जमवंत।
कह करु तिलक बिभीषनै, नल-कपीस-हनुमंत।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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