*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-58
कहे राम मैं नगर न जाऊँ।
पिता-बचन मैं तोरि न पाऊँ।।
तुरत गए सभ तिलक करावन।
कीन्हेउ तिलक-कर्म अति पावन।।
सादर ताहि बिठाइ सिंहासन।
बिधिवत देइ बिभीषन आसन।
आए तुरत राम जहँ रहहीं।
लेइ बिभीषन अपि ते सँगहीं।।
तब प्रभु राम बोलि हनुमाना।
कह लंका पहँ करउ पयाना।
समाचार सभ सियहिं सुनावउ।
कुसलइ-छेमु तासु लइ आवउ।।
तुरत पवन-सुत लंका गयऊ।
देखि निसिचरी तहँ तब अयऊ।।
बिधिवत हनुमत-पूजा किन्ही।
तब देखाइ बैदेही दीन्ही ।।
हनुमत कीन्हेउ सियहिं प्रनामा।
कुसलहि कहेउ सकल प्रभु रामा।।
लखन साथ कपि-सेनहिं माता।
लिए जीति दसमुख सुख-दाता।।
अबिचल राज बिभीषन पावा।
कृपानिधानहिं राम-प्रभावा ।।
कुसलइ-छेमु जानि बैदेही।
नैन नीर भरि कहेउ सनेही।।
का मैं तुमहिं देउँ हे ताता।
बिमल भगति जे दियो बिधाता।।
मम हिय चाहूँ तोर निवासा।
लछिमन सहित राम कै बासा।
सदगुन सदा रहहि तव हृदये।
प्रीति नाथ तव जुग-जग निभये।।
अस कछु जतन करउ हनुमंता।
देखहुँ साँवर तन भगवंता ।।
तुरत कीन्ह हनुमान पयाना।
समाचार रघुनायक जाना।।
दोहा-लेहु बिभीषन-अंगदहिं,पवन-तनय-हनुमान।
कह रघुबर सादर सियहिं,लावहु इहँ सम्मान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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