षष्टम चरण (श्रीरामचरितबखान)-36
देखि राम-सर छन महँ मारे।
सुभट निसाचर कोटि सँघारे।।
क्रोधित कुंभकरन तब होइके।
लेइ खंड गिरि निज कर कसि के।।
फेकन लगा जहाँ कपि-जूथा।
लरत रहा जहँ कपिन्ह बरूथा।।
आवत लखि सबेग गिरि-खंडा।
काटहिं तिन्ह सर राम प्रचंडा।।
बहु कराल सर पुनि प्रभु छाँड़े।
निकसहिं जे तनु तासु पिछाड़े।।
अगनित सर मुख तासु समाए।
जस घन माँहि न तड़ित लखाए।।
रुधिर तासु करिया तन ऐसे।
रुधिर-सरित कज्जर गिरि जैसे।।
होंकड़त-गरजत चलै निसाचर।
भागत फिरहिं डेराइ क बानर।।
जस हुँडार लखि भागहिं भेंड़ी।
देखि ताहि भागै कपि-श्रेड़ी।।
हे सरनागत-रच्छक रघुबर।
कहत फिरैं ते चलत बरोबर।।
सुनतै राम लेइ धनु-सायक।
पहुँचे तब तहँ रघुकुल-नायक।।
सत सर कीन्ह राम संधाना।
तिसु तन घुसे तुरत सभ बाना।।
होइ बिकल भागै कुम्भकरना।
महि-गिरि करन लगे सभ हिलना।।
गिरि तब एक उपारि निसाचर।
फेंकन चला राम-सिर ऊपर।।
तुरत राम कीन्ह संधाना।
काटि क तासु भुजा निज बाना।।
बाएँ हाथ धारि गिरि-खंडा।
दनुजै किया प्रहार प्रचंडा।।
तिसु भुज अपि प्रभु काटि तुरंता।
कीन्हा ताहि अभुज भगवंता।।
दोहा-कुंभकरन बिनु भुज लगै, मंदराचल बिनु पूँछ।
बिटपहीन गिरि सोह नहिं, बिपिन न पुष्पहिं गूँछ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-37
बिचलित भे देखइ रघुनाथहिं।
जनु भछि लेइ त्रिलोकै साथहिं।।
करत चिघाड़ बाइ मुहँ धाए।
लखि अस रूप सुरन्ह घबराए।।
निरखि राम सभ सुरन्ह भयातुर।
छोड़े तीर नाथ रन चातुर ।।
राच्छस-मुहँ तीरन्ह भरि डारे।
तदपि न पाए ताहि पछारे।।
लगै तीर मुहँ भरा पिसाचन।
जिमि ससरीर सरन्ह सरासन।।
तीब्र बान सकोप प्रभु मारे।
सिरहि बिलग धड़ धरा पसारे।।
जाइ गिरा सिर दसमुख आगे।
देखि ताहि सभ भागन लागे।।
पुनि धड़ तासु कीन्ह दुइ भागा।
नाथ-कृपा भुइँ परा अभागा।।
कपिन्ह दबावत भुइँ धड़ परहीं।
जिमि दुइ गिरि नभ तें इहँ गिरहीं।।
नाचत सुरन्ह सुमन बहु बरसहिं।
स्तुति करत-करत बहु हरषहिं।।
तेहि अवसर मुनि नारद आए।
प्रभु-गुणगान करत तहँ धाए।।
बधउ नाथ रावन यहि लागे।
कहत बचन अस पुनि नभ भागे।।
छंद-रन-भूमि महँ प्रभु राम लखि,
ऋषि-मुनि-सरन्ह सभ हर्षहीं।
कटि साजि निषंग,कर गहि धनुष,
रन-भूमि महँ अस लागहीं।
जनु बीर रस ससरीर तहँ,
रन-भूमि महँ बिराजहीं।
श्रम-बूँद मुखमंडल बिराजै,
लोचन कमल इव सोहहीं।
कपि-रीछ पाछे सैन्य-बल,
कछु रुधिर-कन तन मोहहीं।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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