*गीत*
मकर संक्रांति
उत्तम है चारोधाम से,स्नान गंगासागर।
सब देव-लाभ ले लो,संक्रांति को जाकर।।
संक्रांति को दिनकर,होते हैं उत्तरायण।
आशीष सूर्य के सँग,मिलती है नारायण।।
जाओ लगा लो डुबकी,दरिया-ए-हिंद में।
मिलती जहाँ है धारा,गंगा की सिंधु में ।।
ऐसा पवित्र संगम,कहीं और भी नहीं है।
खोजे भी नहीं मिलेगा,जो धाम यहीं है।।
ज्ञानी-तपी कपिल मुनि,जो चिंतक महान थे।
गंगा-मिलन-समुद्र के वे,अनुपम विधान थे।।
उनको करो नमन सभी,इस पर्व पर जाकर।
सिंधु-गंगा-धार में,इस तन को नहलाकर।।
मकर संक्रांति-पर्व सँग,भी लोहड़ी पावन।
यही हैं पर्व प्रेम के,मोहक सदा भावन ।।
खिचड़ी को बाँट खाओ,आपस में मिलाकर।
मिल दूरियाँ मिटाओ,मतभेद भी भुलाकर ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372CG
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