डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *ज़िंदगी के रूप*

    *ज़िंदगी के रूप*

आज अपने जनम-दिन मना लीजिए,

कल न जाने कहाँ शाम हो जाएगी?

ज़िंदगी एक पल है उजाले भरी-

फिर अँधेरों भरी रात हो जाएगी।।


    धूप है,छाँव है,भूख है,प्यास है,

     घात-प्रतिघात है,आस-विश्वास है।

     चलते-चलते यूँ रस्ते बदल जाते हैं-

     देखते-देखते बात हो जाएगी।।


है ये पाषाण से भी कहीं सख़्तदिल,

पुष्प से स्निग्ध,स्नेहिल व कृपालु है।

तोला माशा बने,माशा रत्ती कभी-

जलते शोलों पे बरसात हो जाएगी।।


   ज़िंदगी दास्ताँ प्यार-नफ़रत की है,

   दोस्ती-दुश्मनी-इल्म-शोहरत की है।

    एक पल में हमें बख़्श देती अगर-

     दूसरे में हवालात हो जाएगी।।


स्वार्थ में है जगत सारा डूबा हुआ,

हित यहाँ ग़ैर का गौड़ अब हो गया।

लोग अपनों में गर इस तरह खो गए-

बदबख़्ती की हालत हो जाएगी।।


   लाख खुशियाँ यहाँ हम मनाएँ मगर,

   याद रखना हमेशा यही दोस्तों।

   आज हैं हम यहाँ, कल न जाने कहाँ-

   अजनबी से मुलाकात हो जाएगी।।

आज अपने जनम-दिन मना लीजिये।।

             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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