*ज़िंदगी के रूप*
*ज़िंदगी के रूप*
आज अपने जनम-दिन मना लीजिए,
कल न जाने कहाँ शाम हो जाएगी?
ज़िंदगी एक पल है उजाले भरी-
फिर अँधेरों भरी रात हो जाएगी।।
धूप है,छाँव है,भूख है,प्यास है,
घात-प्रतिघात है,आस-विश्वास है।
चलते-चलते यूँ रस्ते बदल जाते हैं-
देखते-देखते बात हो जाएगी।।
है ये पाषाण से भी कहीं सख़्तदिल,
पुष्प से स्निग्ध,स्नेहिल व कृपालु है।
तोला माशा बने,माशा रत्ती कभी-
जलते शोलों पे बरसात हो जाएगी।।
ज़िंदगी दास्ताँ प्यार-नफ़रत की है,
दोस्ती-दुश्मनी-इल्म-शोहरत की है।
एक पल में हमें बख़्श देती अगर-
दूसरे में हवालात हो जाएगी।।
स्वार्थ में है जगत सारा डूबा हुआ,
हित यहाँ ग़ैर का गौड़ अब हो गया।
लोग अपनों में गर इस तरह खो गए-
बदबख़्ती की हालत हो जाएगी।।
लाख खुशियाँ यहाँ हम मनाएँ मगर,
याद रखना हमेशा यही दोस्तों।
आज हैं हम यहाँ, कल न जाने कहाँ-
अजनबी से मुलाकात हो जाएगी।।
आज अपने जनम-दिन मना लीजिये।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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