*गीत*(16/14)
प्रेम-सिंधु ने लिया हिलोरें,
याद पिया की आती है।
मन में उठा उबाल दरस का-
नहीं चंद्रिका भाती है।।
चमन सभी वीराने लगते,
यद्यपि फूल महकते हैं।
उड़ते पंछी लगें न प्यारे,
यद्यपि सभी चहकते हैं।
कल-कल बहती सरिता-धारा-
सिंधु-मिलन को जाती है।।
याद पिया की आती है।।
जब-जब बहे पवन पुरुवाई,
अंग-अंग मेरा टूटे।
रूठ गए हैं साजन मेरे,
लगे,कर्म मेरे फूटे।
कब सवँरेगी क़िस्मत मेरी-
रह-रह बात सताती है??
याद पिया की आती है।।
कागा बैठ मुँडेरी बोले,
गोरी, मत घबराओ तुम।
झील-पार हैं पिया तुम्हारे,
चाहो तो जा पाओ तुम।
कोयल भी कुछ ऐसी बातें-
गाकर रोज सुनाती है।।
याद पिया की आती है।।
कैसे जाऊँ झील-पार मैं,
मुझको कोई बतलाए?
लाख दुआ मैं दूँगी उसको,
खोया साजन वो पाए।
लकड़ी-निर्मित नाव जगत में-
पार छोड़ मन भाती है।।
याद पिया की आती है।।
आती हूँ मैं पार झील के,
बैठ नाव तिर पानी को।
मिलकर तुमसे करूँगी प्रियतम-
पूरी शेष कहानी को।
रूठा सजन मनाकर सजनी-
पुनि जीवन-सुख पाती है।।
याद पिया की आती है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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