ग़ज़ल--
हादसा आज टल गया फिर से
खोटा सिक्का जो चल गया फिर से
दिल ने की थी शराब से तौबा
देख बोतल मचल गया फिर से
तेरा आशिक़ तेरे इशारे पर
देख घुटनों के बल गया फिर से
जानता था मैं उसकी फ़ितरत को
बात अपनी बदल गया फिर से
इस करिश्मे से महवे-हैरत हूँ
बुझता दीपक जो जल गया फिर से
इतना उस्ताद है वो बातों में
राख चेहरे पे मल गया फिर से
आ गयी याद कैकयी होगी
रथ का पहिया निकल गया फिर से
मशवरे दिल के मान कर *साग़र*
वक़्त अपना संभल गया फिर से
विनय साग़र जायसवाल
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