राजेश कुमार सिंह "श्रेयस" लघुकथा

 #गद्य_ध्रुपद 43

#तब_रिश्ते_दिल_के_होते_थे l


जाड़ा रजाई  मे घुसने की भरपूर कोशिश कर रहा था और  रजेशर उसको रोकने के सारे यत्न किये जा रहा था l घुटनो को नाक तक ले जाने से लेकर, रजाई को लपेट लेने  तक  की पूरी कोशिश जारी थी l आसमान के  सारे तारे मैदान छोड़ कर भाग गए थे l सिर्फ शुकउआ [ शुक्र तारा ] सुबह होने का इंतजार कर रहा था l चरर मरर चरर मरर रर्रर्रर्रर्र की आवाज के साथ रजेशर की  नींद खुल गई l गन्ने के कोल्हू से निकली यह आवाज हर रोज रजेशर को  जगा देती l जुग्गन  काका और माही बो काकी गन्ने की पैराई करने हर रोज सुबह देवनंदन बाबू के कोल्हाड़े आ जाते थे l रजेशर के दोनों बैल गन्ने के कोल्हू के चारो और लगातार चक्कर लगा रहे थे l करीब एक कराहा गन्ने का रस आधा माधा खौल कर खदकने ही वाला था l  कराहे  से बरध महिया को काछती, माही  बो काकी को देख कर रजेशर अनायास बोल पड़ा,..काकी! सुगनी के  का हाल चाल बा ? बाबू ठीके बा , परसोईयें ससुरा से आइल हउवे l यह कह कर माही बो काकी सुबुकते हुए, अपने पल्लू से आँखों के आँशु  को पोछने लगी l 

  रजेशर को सब कुछ अच्छा नही होने का पूरा अंदेशा हो गया था l उसने माही बो काकी को जब बार बार कुरैदा तो माही बो काकी के दिल का दर्द उभर आया l काकी ने रजेशर से सारी बातें  बता दीं  l

सुगनी की शादी बचपन मे ही हो गई थी l बड़ी मुश्किल से शादी के दिन वह शादी के मंडप मे बैठ पाई थी, और आखिरकार शादी की दो तीन रस्म मे बाद वह सो भी गई थी l  दस बारह साल बाद  उसका गौना हुआ था और वह ससुराल चली गई थी  l मुश्किल से छः सात महीने वह ससुराल मे रह पाई थी l कल ही उसका पति उसे घर लेकर आया था  l आते वक्त सुगनी के ससुर ने साफ साफ बोल दिया था, कि अगली बार यदि बिना साइकिल के आई तो तुम्हें घर में  घुसने नही दिया जाएगा l 

   रजेशर देवनंदन बाबू का एकलौता बेटा था l जमींदार का बेटा होने के बावजूद भी उसके दिल मे गरीब, और मेहनतकश मजदूर के लिए बहुत  जगह थी l

   आज सुबह सुबह रजेशर,माही बो काकी के घर अपनी चौबीस इंच की साइकिल से पहुंच गया था l   रजेशर बाबू  को घर पर आया देख, सभी भोचक्के से हो गए थे l काकी ने बड़े प्यार से रजेशर को खटिया पर बैठाया, पीने के लिए डालिये मे  भेली का टुकड़ा और एक गिलास ठंडा पानी भी दिया l माही बो काकी ने  रजेशर बाबू से सुबह सुबह घर  आने का कारण पूछा l रजेशर ने जबाब मे  बस इतना ही कहा  कि वह  पाहुन से मिलने चला आया था  l कुछ देर रुकने  के बाद , रजेशर पैदल ही घर की तरफ जाने लगा  l अचानक सुघरी बोल पड़ी,.. ए  माई! रजेशर भईया से बोल दो कि साईकिलिया  तो  लेते जायँ l  , शायद वे  साइकिल को ले जाना  भूल गए हैं l  रजेशर यह सब बात सुन रहा था l अचानक पीछे मुड़कर,रजेशर ने जान बुझकर तेज आवाज बोला ताकि सुघरी का पति भी सुन ले ,..ए काकी! पाहुन से बोल देना  कि अब साइकिल को  वे लेते जायेगे, लेकिन आज के बाद सुघरी से यह कोई  नही कहेगा कि बिना साइकिल लाये वह ससुराल नही आएगी l 


©®#राजेश_कुमार_सिंह "श्रेयस"


लखनऊ, उप्र, ( भारत )

दिनांक 13-01-2021

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