आ तुझे मैं प्यार से भरपूर कर दूँ।
इश्क का इक जाम दे मगरूर कर दूँ।
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आसरा जीने का तू ही हमनवां है।
क्यूं खुशी कोई तेरी काफूर कर दूँ।
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मैं फिदा तुझ पर हुई हूँ इस तरह से।
दिल करे खुद को तेरा मशकूर कर दूं।
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भूलना अपना नहीं वादा कभी तुम।
वस्ल का अपने कहो दस्तूर कर दूँ।
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दर्द से मिलते अगर हो तुम जहां में।
ज़ख़्म को अपने अभी नासूर कर दूँ।
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नाम लेना बंद कर दूँ क्यूं भला मैं।
इस तरह से दिल मेरा क्यूँ क्रूर कर दूँ।
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हिज़्र में तड़पी सुनीता कह रही ये।
रूह को कैसे जिगर से दूर कर दूं।
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सुनीता असीम
७/१/२०२१
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