कहूं बात मोहन तुम्हें रात की।
कि शब भर तुम्हीं से मुलाकात की।
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कभी तो करो बात आकर मिलो।
करो कुछ कदर मेरे जज़्बात की।
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मुहब्बत तुम्हें करना गलती लगे।
खुदी को है कैसी ये सौगात की।
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न तुमसे मैं जीतूँ कभी चाह है।
न चिन्ता मुझे है किसी मात की।
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सितम से तुम्हारे जिए कैसे वो।
कि चोरी पकड़ ली तेरे घात की।
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कन्हैया सुनीता पुकारे तुम्हें।
जरूरत तुम्हारी करामात की।
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सुनीता उपाध्याय
१५/१/२०२१
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