🌹ग़ज़ल ---🌹
मुफायलुन-फयलातुन-मुफायलुन फेलुन
ये सर्द रात है जुगनू दुबक रहे होंगे
हज़ारों दिल के दरीचे खटक रहे होंगे
मुझे यक़ीन है महफ़िल में उनके आते ही
हरिक निगाह में वो ही चमक रहे होंगे
मैं सोचता हूँ हटा दूँ हया के पर्दों को
वो मारे शर्म के शायद झिझक रहे होंगे
निगाहे-तीर से जो ज़ख़्म दे दिये तुमने
वो आज सोच तो कैसे फफक रहे होंगे
कभी महल जो बनाये थे हमने ख़्वाबों के
तिरे मिज़ाज से सारे दरक रहे होंगे
बुलंदी देख के जलते हैं जो भी लोग यहाँ
हमारे क़द को वो बरसों से तक रहे होंगे
ग़ज़ल को सुन के बजाईं न तालियाँ जिसने
ये शेर ज़ख़्म पे उसके नमक रहे होंगे
तवील रात का जंगल है और तन्हाई
तिरे फ़िराक में *साग़र* सिसक रहे होंगे
🖋विनय साग़र जायसवाल
15/12/18
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