विधवा पुनर्विवाह चालीसा
दोहा:
विधवा के सम्मान से, कटता मन का पाप।
विधवा को लक्ष्मी समझ, दूर करो संताप।।
विधवा की रक्षा करो, हर लो दुःख अरु शोक।
आओ अग्र समाज में, बनो नहीं डरपोक।।
विधवा का सम्मान किया कर।
विधवा का अपमान नहीं कर।।
विधवा को जीने का हक है।
विधवा को रहने का हक है।।
कभी नकारो मत विधवा को।
सहज सकारो नित विधवा को।।
विधवा का सम्मान जहाँ है।
मानवता का ज्ञान वहाँ है।।
बैठाओ विधवा को उर में।
दो सिंहासन अंतःपुर में।।
सिंहासन पर नित्य विराजें।
पा कर मदद स्वयं में राजें।।
विधवावों का पुनर्वास हो।
सुंदर घर प्रिय शुभ निवास हो।।
इनके प्रति जिसमें संवेदन।
वह खुशहाल दिव्य प्रतिवेदन।।
इन्हें प्रेम-अहसास चाहिये।
सहानुभूति उजास चाहिये।।
होय विवाह पुनः इनका भी।
स्थापित हो समाज इनका भी।।
जो भी इनकी मदद करेगा।
स्वांतः सुख का भोग करेगा।।
इनके प्रति जहँ प्रेम-स्नेह है।
वहीं ईश का करुण-गेह है।।
विधवावों को राह दिखाओ।
फिर से इनको देवि बनाओ।।
अपनाओ इनको बढ़-चढ़कर।
गढ़ दो प्रिय समाज अति सुंदर।।
विधवा को विधवा मत जानो।
विधवा की अस्मिता बचाओ।।
नहीं टूटने इनको देना।
इनको सीने में रख लेना।।
इनको कभी न रोने देना।
मानवता का वट बो देना।।
अश्रुधार को मत गिरने दो।
मुस्कानों में ही बसने दो।।
विधवाएँ भी नारी होतीं।
अतिशय कोमल प्यारी होतीं।।
इसको निर्मल बन बहने दो।
गंगा माता सी बनने दो।।
दोहा:
विधवा पुनर्विवाह का,करो समर्थन नित्य।
विधवा को स्थापित करो, बन जाये वह स्तुत्य।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
बेटी (दोहे)
बेटी को बेटा समझ, कर उसका सम्मान।
दोनों में क्या फर्क है, बेटी दिव्य महान।।
बेटी घर की रोशनी, करती घर उजियार।
आदि शक्ति सम्पन्न यह, रचती घर संसार।।
करतीं प्यारी बेटियाँ, घर का सारा काज।
शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर, करतीं दिल पर राज।।
बेटी के आयाम बहु, यह बहु- उद्देशीय।
बेटी को अति स्नेह दो, यह अतिशय महनीय।।
बेटी की पूजा करो, यही सृष्टि का धाम।
अब तो बेटी कर रही, सकल लोक में नाम।।
कोई ऐसा पद नहीं, जिस पर वह आसीन।
जग के नित्य विकास में, बेटी प्रबल प्रवीण।।
बेटी के अरमान को, मत कर चकनाचूर।
सदा मनाओ जन्मदिन, बेटी का भरपूर।।
बेटी का जब जन्म हो, होना बहुत प्रसन्न।
आयीं घर में आज हैं,लक्ष्मी जी आसन्न।।
अति पवित्र अवधारणा, बेटी शब्द महान।
बेटी में बेटा छिपा, बेटी में भगवान।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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