बस श्याम नाम ही मेरी प्यासी नज़र में है।
इक दर्द प्यार का मेरे दर्दे जिगर में है।
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वो गीत हैं मेरा वो ही मनमीत बन गए।
सारे जहाँ में बात यही तो ख़बर में है।
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दासी बनी जो उनकी तो मोहन मेरे हुए।
अब तो मेरा बसेरा भी उनके नगर में है।
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कैसे नहीं हमारे मिटेंगे ये फासले।
लगता है यूं कि कान्हा मेरे असर में हैं।
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वो जानते हैं ये कि सुनीता है पामरी।
मुस्कान कृष्ण की बसी उसके अधर में है।
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सुनीता असीम
२१/१/२०२१
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