दिनांक --7/1/2021
स्वेच्छिक पांच दोहे
1 प्रभु चिंतन कर ले मनः,संगत की है
बात
हिय में ईश निवास है ,करना मत
आघात।।
2 जीवन दर्शन दे दिया,प्रभु वंदन सब
सार
धीरे धीरे पग बढ़ा,मान कभी मत हार।
3 धर्म कर्म में मन लगा,होगा बेड़ा पार।
तय मंजिल मिलना तुम्हें, यदि उर
शुद्ध विचार ।
4 मन में धैर्य हो सदा,ये जीवन सौगात
जीवन मानो तब सफल,परहित की
जब बात ।
5 कान्हा रटता मन सुनो,दर्शन दे दो
आज
घूमूं बन कर बावरी,पूर्ण करना काज।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
कविता
6.1.2021
जीवन दर्शन जिसने समझा
उसका ही मन शांत रहा
समभाव रख मन में अपने
उसने सारा काम किया ।
मिलें राह में संगी साथी
मिल कर जग में काम किये
बढ़े चले सब संग में अपने
मन में ये मनोभाव रहे ।
बिछड़ें भी है राह में अपने
दर्द दिलों के पार हुए
दूजों को लगा गले हम
दुख को अपने दूर करें ।
काम आ जाये जीवन अपना
परहित हम सदा कर्म करें
हो सकता है मानव मनवा
जन्म मरण से पार करे ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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