निशा अतुल्य

 गीत

21.1.2021


भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।

कैक्टस सी उग आइ बातों के

कुछ झाड़ हटाने बैठी हूँ । 

अपने दिल में लटके जालों को

मैं आज मिटाने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


छोड़ दिया था जिनको राहों में 

मैं उन्हें बुलाने बैठी हूँ ।

भूल गई सब बिगड़ी बातें अब

रूठों को मनाने बैठी हूँ  ।

चलो साथ मिलकर सब बात करें

कुछ राज बताने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


होता मन सबका सहज सरल है

बाधाओं में बांधे क्यों कर।

विपत्ति आई आकर जाएगी 

कौन भला ठहरा है कब तक ।

कुछ ऐसा जो मन में आता है

वो तुम्हें बताने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


कुछ कटु बातों ने घाव दिए जो

मेरे मुझ से दूर हुए जो  ।

रूठे मेरे सब दोस्त पुराने

भूले बिसरे गीत हुए वो।

क्यों दफ़न हुए अहसास पुराने

अहसास जगाने बैठी हूँ ।

भूली बिसरी अपनी यादों से 

पहचान बनाने बैठी हूँ ।।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...